नीरज महाजन द्वारा
5 नवंबर 2015 को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ( एनएचएआई ) ने अधूरे और होने ना होने के बराबर ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे के शिलान्यास करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया। ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे केवल फाइलों में मौजूद है
सच तो ये है कि एनएचएआई के पास ख्याली पुलावों के अलावा 135 किलोमीटर लंबे ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे के निर्माण के लिए पूरी भूमि का कब्जा है ही नहीं।
शुरू से यह परियोजना गलत प्रबंधन का षिकार रही है। आज स्थिति इतनी खराब है कि परियोजना कब पूरी होगी – कहा नहीं जा सकता। इसके पीछे परियोजना की मिसहैंडलिंग या कुप्रबंधन है।
जानकार सूत्रों के अनुसार, परियोजना की परिकल्पना करते समय जमीन पर सर्वेक्षण करने की बजाय वातानुकूलित कमरों में ड्राइंग बोर्ड और गूगल मैप्स पर ही पूरी योजना बनी। नतीजा यह था कि राजमार्ग की योजना बना रहे योजनाकारों और विशेषज्ञों को मालूम ही नहीं था कि वह जिस जगह नकषे पर लकीर खींच रहें हैं वहा वास्तव में जमीन पर कोई बसाहट, किसी के खेत या सार्वजनिक संस्थान हंै भी या नहीं
गाजियाबाद की एडी एम (एल.ए) डॉ आभा गुप्ता और एनएचएआई के बीच लम्बी नोकझोंक चली। नतीजा यह हुआ कि डॉ गुप्ता को स्थानांतरित कर दिया गया।
परिणाम स्वरूप राजमार्ग के दस्तावेजों में भूमि की पहचान करने के लिए दर्षाए गये खसरा नम्बर राजस्व अभिलेखों से मेल नहीं खाते। इस बात को लेकर गाजियाबाद की अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (भूमि अधिग्रहण) डॉ आभा गुप्ता और एनएचएआई के बीच लम्बी नोकझोंक चली। यह बात सन 2008 की है। कथित तौर पर अपर्याप्त सर्वेक्षण, गल्त खसरे और षिजरे नम्बरों के बारे में कडे षब्दों में शिकायत करते हुए डॉ गुप्ता ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को कई पत्र लिखे।
डॉ आभा गुप्ता द्वारा लिखे ऐसे करीब चार पत्र ताजाखबर न्यूज के पास मौजूद हंै। डॉ गुप्ता द्वारा एनएचएआई की आलोचना की क्या प्रतिक्रिया हुई यह तो नहीं मालूम पर यह बात निष्चित है कि उसके बाद डॉ आभा गुप्ता अपने पद पर टिक नहीं पाईं और उन्हें स्थानांतरित कर दिया गया।
इसके बाद क्या था। उनके बाद आने वाले सभी एडी एम (एल.ए) को साफ षब्दों में अपनी लक्षमण रेखा का अंदाजा लग गया। परिणाम स्वरूप उसके बाद जैसा राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने स्थानीय जिला प्रशासन से चाहा – बिना किसी प्रतिरोध के होता चला गया।
पेष हैं कुछ ऐसे सबूत और तथ्य जो साफ तौर पर यह दिखाते हैं कि किस तरह जिला प्रशासन के सक्रिय अनुपालन के बिना या संाठगांठ से यह गोरख ध्ंाधा चलता रहा।
खतौनी (सरकारी भू-अभिलेख) जिसके अनुसार 28 जनवरी 2012 को भू-परिसर का कब्जा ले लिया गया था जो सच नहीं है।
ऊपर दिखाया गया एक खतौनी (सरकारी भू-अभिलेख) है जिसके अनुसार राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने 28 जनवरी 2012 के भूखंड परिसर का कब्जा ले लिया था।
करतार सिंह आज भी सरकार को बिजली के बिल चुकाता है जो सबूत हैं कि उसी के पास जमीन का वास्तविक कब्जा है।
यह सच नहीं है क्योंकि इस भूमि का वास्तविक मालिक करतार सिंह है। करतार सिंह आज भी सरकार को इस भूमि पर उपयोग होने वाली बिजली के बिल चुकाता है जो इस बात का सबूत हैं कि उसी के पास आज भी जमीन का वास्तविक कब्जा है।
किसी भूमि के मूल मालिक से बातचीत, कीमत निधारण या उसकी स्वीकृति के बिना सरकारी रिकॉर्ड में कागज बदलना धोखाधड़ी नही ंतो क्या है?
राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ,द्वारा भूमि के वास्तविक मालिक की जानकारी और सहमति के बिना सरकारी रिकॉर्ड में जमीन के स्वामित्व बदलना अपराध है।
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