आदिवासी समाज में महिला पुरुष की साथी है। वह उसकी सहकर्मी है। उसकी समाज और परिवार में बराबर की भागीदारी है। जी हां, बस्तर की आदिवासी महिलाएं हम शहरी महिलाओं की तरह अपने परिवार के पुरुष सदस्यों की मोहताज नहीं हैं। उन्हें बाजार से सब्जी-भाजी और सौदा मंगवाने से लेकर खेतों में हल चलाने तक के लिए अपने बेटे या पति का मुंह नहीं ताकना पड़ता है।
http://taazakhabarnews.in/नारी-सशक्तीकरण-की-अनोखी-म/
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