संसार में, हर आत्मा (सीताजी) का लक्ष्य केवल परम-आत्मा (श्रीराम) की खोज है. शर रम य परम आतम क दरशन ह 'चतर-कट' ह. हनमन और रवण दन ह मन क अलग अलग भव ह. रवण मन म असथरत पद कर भयभत करत ह. जबक हन-मन शनत, सथरत और सतय क बध करकर सभ दतय (दवत भव) क वनष करत ह. हनमन सकट-मचन अरथत नरमल मन ह जसक जगरत हत ह जव क आतमततव क समझ आन लगत ह और कई भय नह रहत.
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