Sunday, January 3, 2016

क्यों राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण प्रधानमंत्री से ही चाल चलने को विवष हुआ?

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नीरज महाजन द्वारा
राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे को पूरा करने के लिए जबरदस्त जल्दी में था। ऐसे में प्राधिकरण अपनी ही सड़कों पर लगे रोडसाईन – जल्दबाजी चिता का द्वार है और दुर्घटना से देरी भली – भूल जाने के लिए मजबूर हो गया।
जानकारों के अनुसार ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार (यूपीए) की प्राथमिकता वाली परियोजनाओं में से था। यूपीए सरकार तो गई लेकिन दुर्भाग्यवष एक्सप्रेसवे कभी पूरा नहीं हो सका । इस परियोजना को 31 दिसंबर, 2013 तक पूरा हो जाना चाहिए था।
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ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे – को बनाना मूल रुप से राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की जिम्मेवारी है । यह काम भारत सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, की निगरानी में चल रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने 11 फरवरी 2005 को राजधानी के बाहर एक और रिंग रोड बनाने और दिल्ली में बिना प्रवेष किये बाहर से ही गुजरने वाले यातायात को गुजरने के लिए 135 किलोमीटर लंबे दो एक्सप्रेसवे के निर्माण का आदेश दिया था।
पूर्वी और पश्चिमी पेरिफेरल एक्सप्रेसवे के निर्माण के पीछे दिल्ली में भीड़ और प्रदूषण कम करने का उदेष्य था।
अच्छे इरादों के बावजूद पश्चिमी पेरिफेरल एक्सप्रेसवे का काम 60 प्रतिषत पर आ कर रुक गया। जबकि ईस्टर्न पेरिफेरलवे केवल फाईलों मंे ही बनता रहा।
आज यह स्थिति है कि ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे-जिसकी वास्तव में 2010 तक पूरा होने की उम्मीद थी जुलाई 2018 तक बनने की कोई संभावना नहीं है।
कई अवसरों पर परियोजना के निर्माण में देरी को लेकर नेश्नल ग्रीन ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की खिंचाई की है।
उच्च न्यायालय ने विशेष तौर पर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को इस परियोजना को जल्द से जल्द शुरू करने के लिए लताडा था। पूर्व चीफ जस्टिस एचएल दत्तू, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एके गोयल ने एनएचएआई के परियोजना को पूरा करने के लिए आगे समय बढ़ाने से साफ इंनकार कर दिया था।
हालांकि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की वकील इंदु मल्होत्रा ने कोर्ट से – कम से कम छह महीने का और समय मांगा था परन्तु उच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने प्राधिकरण को केंद्र सरकार या विश्व बैंक से पैसे उधार लेकर परियोजना को 30 जुलाई 2018 से पहले चालू करने का र्निदेष दिया था।
गौरतलब है कि परियोजना में विलंभ का मुख्य कारण कई टाले जा सकने वाले मुकदमें और भूमि अधिग्रहण को लेकर बेवजह विवाद हैं। सोनीपत, पलवल, फरीदाबाद, बागपत, गाजियाबाद और गौतम बुद्ध नगर में कई छोटे और मध्यम वर्गीय किसान अलग अलग जगह मुआवजे की बदलती दरों का विरोध कर रहे हैं। विभिन्न जिलों में किसान अपनी भूमि पर जबरन अधिग्रहण और मुआवजे बंटने के तरीके से नाखुश हैं।
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जानकार सूत्रों के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) वास्तविक भू-स्वामी द्वारा दायर आपत्ति को नजरअंदाज कर राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएचएआई) अधिनियम के तहत भूमि अधिग्रहण का जबरन दुरुपयोग कर रहा है । राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम के अंतरगत एनएचएआई के पास प्रावधान है कि किसी भूमि का एक बार अधिग्रहण अधिसूचित होने के बाद उसे निरस्त या डिनोटिफाइ नहीं किया जा सकता। परिणाम स्वरूप यदि बाद में यह पता चलता है कि भले उक्ते जमीन का अधिग्रहण गलत या अनावश्यक था तो भी उसे मूल मालिक को वापस नहीं किया जा सकता । मतलब यह हुआ कि जानते हुऐ भी कि कुछ काम गल्त हुआ– राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएचएआई) अधिनियम में उसका कोई विकल्प नहीं है।
एक वकील जो अपना नाम गुप्त रखना चाहते हैं – ने ताजाखबर न्यूज को बताया- इसका मतलब साफ है कि एनएचएआई को बिना किसी भी उपचारात्मक विकल्प के गल्तियां करने और उन्हें दोहराने का कानूनी अधिकार हैं। उनके द्वारा की गई भूल भी जायज और न्यायसंगत है।
परिणाम स्वरूप ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे जिस पर करीब 2676 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान था, अब बढ़कर 5,763.10 करोड़ बन चुकी है। एक अनुमान के अनुसार जबतक यह परियोजना पूरी होगी तबतक इसकी कीमत बढ़कर 7558 करोड़ रुपये पार कर चुकी हागी। कथित तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र का राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण जो पहले से ही 86.97 करोड़ रुपये से अधिक की हानि झेल रहा है क्या इस अतिरिक्त बोझ को सहन कर सकता हैं?
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ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे के निर्माण के पीछे मुख्य उद्देश्य, दिल्ली में भीड़ और वायु प्रदूषण कम करना था। आज की तारीख में उत्तर प्रदेश या हरियाणा पहुंचने के लिए हजारों ट्रक दिल्ली से गुजरते हैं।
ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे हरियाणा में सोनीपत, फरीदाबाद और बागपत, उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर और ग्रेटर नोएडा में – पांच जिलों से गुजरेगा।
आज ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पांच जिलों में विनाष और तबाही का प्रतीक बन चुका है। इसे बनाने के लिए हजारों की संख्या में पेड, मकान, स्कूल, कालेज, मंदिर, मस्जिद और अन्य संस्थानों को ध्वस्थ किया जाऐगा।
क्या दिल्ली के विकास और फायदे के लिए उत्तर प्रदेश और हरियाणा के लोगों को मौत की सजा सुनाना जायज और न्याउचित है?

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